अक्षय तृतीया तिथि ईश्वरीय तिथि है : आचार्य धर्मेंद्रनाथ

रिपोर्ट: राजीव मिश्रा|करजाईन

अक्षय का अर्थ है- जिसका कभी नाश (क्षय) ना हो अथवा जो अस्थाई रहे। अस्थाई वहीं रह सकता है जो सर्वदा सत्य है और सत्य केवल परमात्मा ईश्वर ही है जो अक्षय, अखंड एवं सर्व व्यापक है। यह अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर तिथि है। यह कहना है त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र का। उन्होंने कहा कि यह अक्षय तिथि परशुराम जी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कही जाती है। परशुराम जी की गिनती चिरंजीवी महात्माओं में की जाती है। अतः यह तिथि चिरंजीवी तिथि भी कहलाती है। भारतवर्ष धर्म-संस्कृति प्रधान देश है। हिंदू संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। क्योंकि व्रत और त्योहार नई प्रेरणा एवं स्फूर्ति का परिपोषण करते हैं। भारतीय मनीषियों ने व्रत पर्वों का आयोजन कर व्यक्ति और समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाया है। इस अक्षय तृतीया तिथि को आखातीज अथवा आखातीज भी कहते हैं। इसवार अक्षय तृतीया दिनांक 10 मई को है। इसी तिथि को चारों धामों में से एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।

आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र

आचार्य धर्मेंद्र ने कहा कि, इस अक्षय तृतीया तिथि को ही वृंदावन में श्री बिहारी जी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार होते हैं। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु भक्तजन चरण-दर्शन के लिए वृंदावन पधारते हैं। भारतीय लोक मानस सदैव से ऋतु पर्व मनाता रहा है। अक्षय तृतीया का पर्व वसंत और ग्रीष्म के संधिकाल का महोत्सव है। उन्होंने कहा कि इसी तिथि को नरनारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए उनकी जयंतीयाँ भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। इस तिथि में गंगा स्नान, पितरों का तर्पण, जल से तर्पण और पिंडदान भी इस विश्वास से किया जाता है कि इसका फल अक्षय होगा। इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। क्योंकि कृतयुग (सतयुग) का कल्पभेद से त्रेतायुग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। इसमें जल से भरे कलश, पंखे, खराँव, जूता, छाता, गौ, भूमि, स्वर्णपात्र आदि का दान पुण्यकारी माना गया है। इस प्रकार के दान के पीछे लोक विश्वास है कि, जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा वे समस्त वस्तुएं स्वर्ग में गर्मी की ऋतु में प्राप्त होगी। कुल मिलाकर इतना कह सकते हैं कि इस प्रकार के तिथि पर्व मनाने से आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति निश्चित होती है।

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