



News Desk Supaul:
सुपौल जिले के किसनपुर में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में स्वास्थ्य विभाग की गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। अस्पताल परिसर में भारी मात्रा में दवाएं कचरे के ढेर में पड़ी मिलीं, जिनमें से कई दवाएं एक्सपायरी हो चुकी थीं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इनके बीच कई ऐसी दवाएं भी मिलीं जो बिल्कुल सही स्थिति में थीं और आने वाले महीनों या अगले वर्ष तक उपयोग योग्य थीं। यह घटना न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि दवा प्रबंधन और जिम्मेदारी को लेकर भी गंभीर चिंताएं खड़ी करती है।
टूटे-फूटे शेड में पड़ा ‘स्वास्थ्य’ का कचरा
अस्पताल परिसर में मौजूद एक पुराने, जर्जर और टूटे हुए टिन शेड, जो दिखने में गैराज जैसा था, में यह दवाएं पड़ी मिलीं। वहां टूटा-फूटा फर्नीचर, कबाड़ और अन्य अनुपयोगी सामान भी रखा हुआ था, जिससे जगह पूरी तरह कचरे के ढेर में तब्दील हो गई थी। इसी कचरे के बीच अस्पताल का मूल्यवान और जरूरतमंद मरीजों के लिए उपयोगी दवा स्टॉक पड़ा मिला।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इस शेड में लंबे समय से पुराने सामान और एक्सपायरी दवाएं फेंकी जाती रही हैं, लेकिन इस बार लापरवाही का आलम यह था कि बिना एक्सपायर हुई, पूरी तरह उपयोगी दवाएं भी वहीं फेंक दी गईं। इनमें जीवनरक्षक इंजेक्शन, बुखार और संक्रमण की दवाएं, तथा ब्लड प्रेशर कंट्रोल जैसी महत्वपूर्ण दवाएं शामिल थीं।
मामला सामने आते ही हड़कंप
जैसे ही यह मामला सामने आया, अस्पताल प्रशासन में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में नॉन-एक्सपायर्ड दवाओं को वहां से निकालकर अस्पताल के स्टोर में वापस रखने का काम शुरू कर दिया गया। हालांकि, यह सवाल अब भी बना हुआ है कि जो दवाएं मरीजों के लिए बेहद जरूरी थीं, उन्हें कचरे में क्यों फेंका गया और दवा स्टॉक की नियमित जांच क्यों नहीं की गई।
प्रभारी चिकित्सक का बयान
इस संबंध में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, किसनपुर के प्रभारी चिकित्सक डॉ. अभिषेक कुमार सिन्हा ने बताया,
“कचरे में पड़ी दवाओं में कुछ नॉन-एक्सपायर्ड दवाएं भी मिली हैं, जिन्हें तुरंत अस्पताल के स्टोर में वापस लाया जा रहा है। इस पूरे मामले की जांच कराई जाएगी और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”
लापरवाही पर उठे सवाल
इस घटना ने दवा भंडारण और वितरण व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों को समय पर और मुफ्त दवा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी जहां सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, वहीं इस तरह की लापरवाही से न केवल दवाओं की बर्बादी हो रही है, बल्कि जरूरतमंद मरीजों को उनका हक भी नहीं मिल पा रहा है।