सुपौल में एनडीए का राजनीतिक प्रभुत्व लगातार दो दशकों से कायम, विधानसभा चुनाव में बनेगा क्या हाल, पढ़े पूरी खबर

News Desk Supaul:

सुपौल जिला बिहार की राजनीति में लंबे समय से एनडीए का मजबूत गढ़ रहा है। जिले की पांचों विधानसभा सीटें—सुपौल, निर्मली, पिपरा, त्रिवेणीगंज और छातापुर—वर्तमान में एनडीए के नियंत्रण में हैं। इनमें चार सीटें जनता दल (यूनाइटेड) के पास हैं, जबकि एक सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में है। राजनीतिक समीकरण और गठबंधन बदलते रहे हैं, लेकिन एनडीए ने इस जिले में लगातार पकड़ बनाए रखी है। यदि पिछले 20 वर्षों के चुनावों पर नजर डालें तो 2005 के विधानसभा चुनाव से ही एनडीए का वर्चस्व साफ दिखाई देता है।

2015 के विधानसभा चुनाव में जब जदयू ने राजद के साथ गठबंधन किया था, उस समय पिपरा सीट राजद ने अपने खाते में दर्ज की थी, जबकि अन्य चारों सीटें एनडीए के कब्जे में रही। 2020 के चुनाव में फिर से सभी पांच सीटें एनडीए के पक्ष में गईं, जिसमें चार सीटें जदयू के नाम और एक भाजपा के नाम रही।

क्षेत्रवार विवरण देखें तो सुपौल विधानसभा क्षेत्र से जदयू के विजेंद्र प्रसाद यादव 1990 से लगातार जीतते आ रहे हैं। निर्मली विधानसभा क्षेत्र से भी जदयू के अनिरुद्ध प्रसाद यादव ने लगातार जीत हासिल की है, जो पहले किसनपुर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करते थे।

छातापुर विधानसभा क्षेत्र में 2005 में जदयू के विश्वमोहन कुमार ने जीत दर्ज की थी। 2010 में जदयू ने नीरज कुमार सिंह बबलू को उम्मीदवार बनाया और उन्हें जीत मिली। 2015 और 2020 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर अपनी सीट बरकरार रखी।

त्रिवेणीगंज विधानसभा क्षेत्र में 2005 में विश्वमोहन कुमार (जदयू) विजयी रहे। 2009 के उपचुनाव में दिलेश्वर कामैत ने जदयू के लिए जीत हासिल की। 2010 में अमला सरदार की जीत हुई। 2015 और 2020 में वीणा भारती जदयू के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरी और जीत हासिल की।

पिपरा विधानसभा क्षेत्र 2010 में अस्तित्व में आया। इस क्षेत्र में 2010 में जदयू की सुजाता देवी ने जीत हासिल की। 2015 में जदयू-राजद गठबंधन के तहत राजद के यदुवंश कुमार यादव विजयी हुए। 2020 में एनडीए के समर्थन से जदयू ने राम विलास कामत को मैदान में उतारा, जिन्होंने जीत दर्ज की।

कुल मिलाकर सुपौल जिला एनडीए के लिए मजबूत किला बन चुका है। आने वाले विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या एनडीए अपनी पकड़ बनाए रख पाएगा या फिर विपक्षी दलों को कोई अवसर मिलेगा।

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