Report: A.K Choudhari
जिले के नगर पंचायत अंतर्गत शांतिनगर वार्ड 8 स्थित नौ दिवसीय श्री राम कथा महोत्सव, जो 10 नवंबर से संत श्री मुरलीधर जी महाराज की दिव्य वाणी के साथ आरंभ हुआ था, आज अपने सातवें अध्याय पर पहुँचकर चरम भक्ति रस में डूब गया। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ सुबह से ही पंडाल में उमड़ पड़ी, जहाँ महाराज श्री ने अयोध्याकांड के अत्यंत संवेदनशील और हृदयस्पर्शी प्रसंगों का वर्णन किया।

दशरथ जी का प्रजा-प्रेम और राम के प्रति वात्सल्य का भाव
कथा के दौरान संत श्री मुरलीधर जी महाराज ने बताया कि किस प्रकार भगवान राम के विवाह उपरांत महर्षि विश्वामित्र जी की भावपूर्ण विदाई हुई। इसके आगे, उन्होंने वह महत्वपूर्ण क्षण भी सुनाया जब महाराजा दशरथ ने यह अनुभव किया कि प्रजा, मंत्रीगण और गुरु वशिष्ठ—सभी राम को अयोध्या का राजा बनते हुए देखना चाहते हैं। महाराज श्री के अनुसार, दशरथ जी ने अपने गुरुदेव के पास अत्यंत विनम्रता और प्रेम से जाकर श्रीराम के शीघ्र राज्याभिषेक की अनुमति और मार्गदर्शन माँगा। इस प्रसंग में दशरथ जी की प्रजा-भक्ति और पुत्र राम के प्रति उनके वात्सल्य ने उपस्थित भक्तों के हृदय में विशेष भाव-जागरण किया।

अयोध्या से वनवास — पंडाल में पसरा भावुक सन्नाटा
इसके बाद महाराज श्री ने राम, सीता और लक्ष्मण के अयोध्या से वन जाने का मार्मिक प्रसंग सुनाया। जैसे ही कथा वनवास की व्यथा तक पहुँची, पंडाल में मौजूद श्रद्धालु भावुक होकर सुनते रहे। उन्होंने बताया कि कैसे अयोध्या छोड़ते हुए तीनों के कदम-कदम पर आंसुओं और विश्वास से भरा जनसमूह उमड़ आता था। कथा के इस दृश्य ने हर श्रोता को भाव-विभोर कर दिया।

केवट-प्रसंग ने जीता सबका हृदय
कथा के प्रमुख आकर्षणों में से एक रहा गंगा तट पर भगवान राम और केवट का दिव्य संवाद। महाराज श्री ने विस्तार से बताया कि कैसे केवट ने प्रभु राम के चरण पखारने की जिद की—इस भय से कि कहीं भगवान के चरणों की धूल से उसकी नाव ‘मनुष्य’ न बन जाए, जैसा कि अहल्या के साथ हुआ। संत श्री ने कहा कि केवट और प्रभु के बीच का यह निस्वार्थ भक्ति-समर्पण का संवाद इतना पवित्र था कि पंडाल में बैठे सैकड़ों भक्तों की आँखें नम हो उठीं। प्रभु के लिए केवट का प्रेम, सेवा और समर्पण पूरे वातावरण में भक्ति का सागर बहा गया।

कथा स्थल पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
सातवें दिन की कथा सुनने के लिए दूर-दराज़ से भक्त पहुंच रहे हैं। पंडाल में गूंजते भजन, प्रभु-नाम की ध्वनि और दिव्य वाणी ने सिमराही बाज़ार को आध्यात्मिक उत्सव में बदल दिया है। आयोजकों ने बताया कि अगले दो दिनों में कथा अपने समापन और आशीर्वचन के प्रमुख प्रसंगों के साथ और भी भव्य रूप लेगी।







