रिपोर्ट: राजीव मिश्रा|करजाईन
होली रंगों का त्योहार है। जिस प्रकार प्रकृति रंगों से भरी हुई है, उसी प्रकार हमारी भावनाएं भी विभिन्न रंगों से जुड़ी हुई है। यह कहना है त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र का। उन्होंने होली महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस वर्ष होलीका दहन दिनांक 24 मार्च 2024 दिन रविवार को रात्रि के 10 बज कर 38 मिनट के उपरांत होगी तथा होली पर्व दिनांक 25 मार्च 2024 दिन सोमवार को मनाने का आदेश विश्वविद्यालय पंचांग में दिया गया है। दिनांक 25 मार्च 2024 सोमवार को ही फाल्गुनी पूर्णिमा एवं कुल देवताओं को सिंदूर आदि अर्पण होंगे। सोमवार को पूर्णिमा तिथि दिन में 11 बजकर 41 मिनट तक है। तत्पश्चात प्रतिपदा तिथि आरंभ हो जाएगा और यह पर्व फाल्गुन पूर्णिमा को मनाने का विधान है। इस दिन कुलदेवता को सिंदूर अर्पण करने के साथ-साथ श्री चैतन्य जयंती भी मनाया जाता है।
उन्होंने बताया कि होलिका दहन में भद्रा का त्याग करना चाहिए। होलिका दहन के समय ऊँ होलीकायै नम: मंत्र के साथ विधिवत पूजन का विधान है। ऊँ होलीकायै नमः मंत्र से पंचोपचार विधि से पूजन कर प्रातःकाल होली का भस्म धारण करना चाहिए तथा होलिका दहन समय अग्नि की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। होली पर्व के बारे में पुराणों में कथा है कि, राजा हिरण्यकश्यपु चाहता था कि उनका पुत्र प्रहलाद भगवान नारायण की पूजा उपासना छोड़कर उनकी पूजा करें। ऐसा नहीं करने पर राजा हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र पहलाद पर क्रोधित होकर अपनी बहन होलिका को आदेश देते हुए कहा कि, बहन! तुम अपनी मायावी शक्ति का प्रयोग कर प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि प्रज्वलित कर प्रह्लाद को जलाकर भस्म कर दो। अपने भाई की आज्ञा मानकर बहन होलिका ने ऐसा ही किया। परिणाम यह हुआ कि भगवान के भक्त प्रल्हाद पर तो इसका कोई भी असर नहीं हुआ किंतु होलीका अग्नि में भस्म हो गई। उसी दिन से लेकर आज तक होलिका दहन की खुशी में रंग, अबीर, गुलाल लगाकर सभी अति उमंग के साथ होली मनाते हैं।