निर्मली विधानसभा: जदयू का 15 साल पुराना गढ़, इस बार त्रिकोणीय मुकाबले की पूरी संभावना

News Desk Supaul:

सुपौल, बिहार। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनज़र पूरे राज्य में चुनावी सरगर्मी तेज़ हो गई है। सुपौल जिले की निर्मली विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प माना जा रहा है। पिछले 15 वर्षों से जदयू का मजबूत गढ़ मानी जाने वाली यह सीट अब त्रिकोणीय मुकाबले की ओर बढ़ती दिख रही है। जदयू, राजद और जन सुराज — तीनों दलों ने यहां अपने-अपने मजबूत प्रत्याशियों को उतारा है।

जदयू की लगातार जीत का इतिहास

निर्मली विधानसभा सीट पर 2010 के परिसीमन के बाद पहली बार चुनाव हुए थे। उसी वर्ष जदयू के अनिरुद्ध प्रसाद यादव ने यहां से जीत दर्ज की और तब से लेकर अब तक लगातार तीन बार (2010, 2015 और 2020) उन्होंने इस सीट को अपने कब्जे में रखा है। इस बार भी जदयू ने अपने पुराने और लोकप्रिय चेहरे अनिरुद्ध प्रसाद यादव पर ही भरोसा जताया है।

निर्मली में जदयू की पकड़ इतनी मजबूत रही है कि इसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी साफ देखा गया। जदयू उम्मीदवार दिलेश्वर कामैत को इस विधानसभा क्षेत्र से शानदार बढ़त मिली, जिसने सुपौल लोकसभा सीट पर उनकी जीत सुनिश्चित की।

जन सुराज और राजद ने बनाई नई रणनीति

इस बार मुकाबले को रोचक बनाने के लिए प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने यहां अपने संगठन की ताकत झोंक दी है। पार्टी ने निर्मली से वर्तमान प्रखंड प्रमुख रामप्रवेश कुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। जन सुराज पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में उतर रही है और उसका फोकस स्थानीय मुद्दों के जरिए जनता के बीच पैठ बनाना है।

वहीं महागठबंधन की ओर से राजद ने बैद्यनाथ मेहता को टिकट दिया है। राजद इस सीट को हर हाल में जदयू से छीनने की रणनीति पर काम कर रही है। राजद के संगठन और सामाजिक समीकरणों को देखते हुए यहां का मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है।

चुनावी इतिहास और प्रमुख दल

निर्मली का चुनावी इतिहास मुख्य रूप से जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल के बीच प्रतिस्पर्धा का गवाह रहा है। पिछले कुछ चुनावों में, यहां के मतदाताओं ने एक ही उम्मीदवार पर लगातार भरोसा जताया है, भले ही राजनीतिक गठबंधन बदलते रहे हों। यह इस क्षेत्र में उम्मीदवार की व्यक्तिगत पकड़ को भी दर्शाता है।

सामाजिक समीकरणों में यादव, मुस्लिम और एससी मतदाता की बड़ी भूमिका

निर्मली विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,96,989 पंजीकृत मतदाता हैं। इनमें लगभग 17.30 प्रतिशत मुस्लिम और 13.88 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) मतदाता शामिल हैं। यादव समुदाय यहां निर्णायक भूमिका में है, जो इस चुनावी समीकरण को काफी प्रभावित करेगा। 2020 में यहां 63.20 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था।

स्थानीय मुद्दों पर गर्माएगा चुनावी माहौल

निर्मली का राजनीतिक महत्व जितना बड़ा है, उतनी ही गंभीर यहां की स्थानीय समस्याएं हैं। बाढ़ इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है। नेपाल सीमा से सटे इस इलाके में कोसी नदी का तटबंध टूटना और लगातार आने वाली बाढ़ लोगों की ज़िंदगी पर भारी असर डालती है। 1934 के भूकंप से लेकर 2008 की तटबंध टूटने की त्रासदी तक, निर्मली बार-बार प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आती रही है।

इसके अलावा, बुनियादी ढांचे की कमी, खराब सड़कों, सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं और जमीन विवाद जैसी समस्याएं भी यहां की जनता को परेशान करती हैं। कृषि इस क्षेत्र की जीवनरेखा है, जहां धान, गेहूं, मक्का और पटुवा (जूट) जैसी फसलें प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं।

सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण इलाका

निर्मली विधानसभा नेपाल की सीमा से सटा हुआ क्षेत्र है। यह राघोपुर और सरायगढ़ भपटियाही प्रखंडों से घिरा हुआ है। नेपाल का प्रमुख शहर विराटनगर यहां से महज 70 किलोमीटर की दूरी पर है, जिससे यह इलाका सामरिक और आर्थिक दोनों दृष्टि से खास महत्व रखता है।

चुनाव की रूपरेखा

निर्मली विधानसभा में दूसरे चरण में 11 नवंबर को चुनाव होगा और वोटों की गिनती 14 नवंबर को की जाएगी। निर्मली सीट पर इस बार जहां जदयू अपने पुराने रिकॉर्ड को बरकरार रखने की कोशिश में है, वहीं राजद और जन सुराज इस किले को भेदने की रणनीति में जुटे हैं।

निर्मली की जनता इस बार किसे अपना प्रतिनिधि चुनेगी — यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार का मुकाबला पहले से कहीं ज्यादा कड़ा और मुद्दा आधारित होने वाला है।

Leave a Comment