



न्यूज डेस्क पटना:
बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि वह इस प्रक्रिया पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाएगी और निर्वाचन आयोग (ECI) अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत यह कार्यवाही जारी रख सकता है। हालांकि, अदालत ने चुनाव आयोग की मंशा और कार्यप्रणाली पर कई एहम सवाल भी उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची शामिल थे, ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से पूछा कि यह प्रक्रिया इतनी जल्दबाजी में क्यों की जा रही है, जबकि नवंबर में पहले ही अधिसूचना आनी है। अदालत ने कहा कि वे निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकाय के कार्य में दखल नहीं देना चाहते, परंतु टाइमिंग और पारदर्शिता पर सवाल उठाना जरूरी है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि आयोग ने बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के एक नया शब्द “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट संशोधन की प्रक्रिया कानून में पहले से मौजूद है, जिसे या तो संक्षिप्त रूप में या संपूर्ण लिस्ट बनाकर किया जाता है। लेकिन इस बार आयोग बहुत तेजी से और बिना पर्याप्त जानकारी के पूरी प्रक्रिया लागू कर रहा है।
गोपाल शंकरनारायणन ने यह भी तर्क दिया कि आयोग यह कह रहा है कि 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी। जबकि आज बिहार में सात करोड़ से अधिक मतदाता हैं और इस प्रक्रिया को आनन-फानन में पूरा किया जा रहा है, जिससे कई असुविधाएं और संदेह उत्पन्न हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के अहम सवाल
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति धूलिया ने तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया:
- चुनाव कराने में निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ कितनी हैं?
- इन शक्तियों के प्रयोग की प्रक्रिया क्या है?
- क्या निर्धारित समयसीमा पर्याप्त है, खासकर जब अधिसूचना नवंबर में जारी होनी है?
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मामला गंभीर विचार का है और इसकी पूरी सुनवाई जरूरी है। इसके लिए अगली सुनवाई 28 जुलाई को की जाएगी। साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि 21 जुलाई तक सभी पक्षों को अपना जवाब दाखिल करना होगा।
दस्तावेजों की सूची पर कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने मतदाताओं के सत्यापन में प्रयुक्त दस्तावेजों पर भी सवाल उठाए। न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयोग की ओर से जो 11 दस्तावेजों की सूची दी गई है, वह अपूर्ण प्रतीत होती है। न्याय के हित में आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को भी दस्तावेजों में शामिल करना चाहिए ताकि किसी भी मतदाता को अनावश्यक रूप से वंचित न किया जाए।