



News Desk Patna:
पटना स्थित बापू सभागार में शनिवार को आयोजित बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड के शताब्दी समारोह में उस वक्त नया विवाद खड़ा हो गया, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंच पर उन्हें पहनाई जा रही मुस्लिम टोपी पहनने से इंकार कर दिया। पहले मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष सलीम परवेज ने उन्हें टोपी पहनाने की कोशिश की, लेकिन नीतीश ने हाथ जोड़कर मना कर दिया। इसके बाद अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान ने भी टोपी पहनाने का प्रयास किया, मगर नीतीश ने वह टोपी उठाकर जमा खान को ही पहना दी। यह पूरा वाकया कैमरे में कैद हो गया और वीडियो वायरल होते ही ‘टोपी ट्रांसफर’ विवाद छिड़ गया।
विपक्ष का तीखा हमला
इस घटना को लेकर विपक्ष ने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए इसे उनकी मुस्लिम विरोधी मानसिकता और भगवाकरण से जोड़ा।
- राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, “नीतीश अब किसी धर्म का सम्मान नहीं करते। सत्ता की खातिर उनकी पहचान बदल गई है।”
- कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने व्यंग्य किया, “नीतीश हमेशा अल्पसंख्यकों को टोपी पहनाते रहे हैं, आज असलियत सबके सामने आ गई।”
- तेजस्वी यादव ने भी करारा कटाक्ष किया और इसे नीतीश की “सेक्युलर छवि” पर सवाल उठाने वाला कदम बताया।
विपक्ष ने दावा किया कि बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद नीतीश कुमार की राजनीति बदल चुकी है और वे धीरे-धीरे हिंदुत्व की राह पर बढ़ रहे हैं।
जदयू का बचाव
वहीं, जदयू नेताओं ने सफाई दी है कि नीतीश ने टोपी पहनने से इनकार नहीं किया, बल्कि सम्मान स्वरूप उसे मंत्री जमा खान को पहनाया। पार्टी नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार ने हमेशा सभी धर्मों का सम्मान किया है और इस घटना को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है।
नीतीश की नीति : ‘टीका भी, टोपी भी’
नीतीश कुमार की छवि लंबे समय से एक सेक्युलर नेता की रही है। वे कई बार सार्वजनिक मंचों से यह कह चुके हैं कि “टीका भी लगाना होगा और टोपी भी पहननी होगी।” जानकारों का कहना है कि उनकी सोच हमेशा सभी धर्मों को समान सम्मान देने और किसी एक धर्म को विशेषाधिकार न देने की रही है। दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसा किया हो। कुछ वर्ष पहले सीतामढ़ी में एक मंदिर कार्यक्रम में भी उन्होंने पंडित को माथे पर टीका लगाने से रोक दिया था।
मुस्लिम समुदाय के लिए नीतीश के फैसले
विवादों और विपक्ष के आरोपों के बीच यह भी तथ्य है कि नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में मुस्लिम समुदाय के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, जो पहले की सरकारों में नहीं हुए थे।
- कब्रिस्तान की घेराबंदी योजना : 2006 से शुरू हुई इस योजना के तहत बिहार के 9,000 पंजीकृत कब्रिस्तानों में से करीब 8,000 की घेराबंदी पूरी हो चुकी है।
- मदरसा शिक्षकों को सरकारी शिक्षकों के समान वेतन देने की व्यवस्था।
- उर्दू शिक्षकों और अनुवादकों की नियुक्ति।
- अल्पसंख्यक छात्रावासों का निर्माण और छात्रवृत्ति योजनाओं का विस्तार।
अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष गुलाम रसूल बलियावी का कहना है कि, “नीतीश कुमार ने मुस्लिम समाज के लिए जितना किया है, उतना न तो कांग्रेस ने किया और न ही लालू-राबड़ी राज में।”
बिहार की सियासत में ‘टोपी ट्रांसफर’ का मायाजाल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘टोपी ट्रांसफर’ विवाद महज प्रतीकात्मक राजनीति का हिस्सा है। कांग्रेस शासनकाल में भागलपुर दंगा जैसी घटनाएं और लालू यादव के कार्यकाल में सांप्रदायिक तत्वों को संरक्षण दिए जाने के आरोप विपक्ष की कमजोरी को उजागर करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार का टोपी पहनने से इंकार उनकी सेक्युलर राजनीति का अंत है या फिर यह उनके उस सिद्धांत का हिस्सा है, जिसमें वे किसी एक धर्म को विशेषाधिकार देने से बचते हैं।