मकर संक्रांति महापर्व 15 जनवरी को, आचार्य धर्मेंद्रनाथ से जाने मकर संक्रांति का माहात्म्य

रिपोर्ट: राजीव मिश्रा|करजाईन

वैसे तो प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाता है संपूर्ण भारतवर्ष में। किंतु इस बार मकर संक्रांति का महापर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति का पर्व संपूर्ण भारत वर्ष में पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। संक्रांति का अर्थ होता है संक्रमण वह जिस काल समय में हो अर्थात इस बार मकर संक्रांति का पुण्य काल दिनांक 15 जनवरी 2024 को प्रातः काल 8 बजकर 42 मिनट से प्रारंभ कर दिन के 3 बजकर 6 मिनट तक है, जो पुण्य पद है। पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति सुख, शांति, वैभव, प्रगति सूचक, जीवो में प्राण दाता, स्वास्थ्यवर्धक, औषधियों के लिए गुणकारी, सिद्धि दायक और आयुर्वेद के लिए विशेष महत्व की है। जिस काल में संक्रांति है उससे 16 घड़ी पहले और 16 घड़ी बाद पुण्य काल मानते हैं। परंतु मकर संक्रांति को विशेष महत्व देने के कारण 40 घड़ी बाद तक पुण्यकाल होता है।

आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र

यह कहना है त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र का। उन्होंने मकर संक्रांति महत्व पर बताते हुए कहा कि जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश अर्थात संक्रमण करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति इस मायने में अति महत्वपूर्ण है कि, इस समय सूर्य देव ऐसे कौन पर आ जाते हैं जब वे संपूर्ण रश्मिया मानव पर उतारते हैं। इस आध्यात्मिक तत्व को ग्रहण करने के लिए साधक को चैतन्य होना आवश्यक होता है। मकर संक्रांति को सूर्य साधना का पर्व माना जाता है। सूर्य प्रत्येक राशि पर एक महीना तक संचार करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक माह में प्रत्येक राशि की संक्रांति क्रमशः आती रहती है, इनमें मकर संक्रांति का विशेष महत्व बताया गया है। क्योंकि यह संक्रांति सौम्यायन संक्रांति है। इस दिन भगवान भास्कर उत्तरायण हो जाते हैं। मकर आदि 6 तथा कर्क आदि 6 रासियों का भोग करते समय सूर्य क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन में रहते हैं। इसी दिन से सूर्य देव के उत्तरायण होने से देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त प्रारंभ होता है। अतः उत्तरायण होने पर वे देवताओं के तथा दक्षिणायन में पितरों के अधिपति होते हैं। सूर्य 12 राशियों में प्रवेश करता है। इसलिए वर्ष में लगभग 11 संक्रांति होते हैं। दक्षिणायन से उत्तरायण में आने की सूर्य की यह प्रक्रिया और एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य के प्रवेश दोनों का संगम ही मकर संक्रांति कहलाती है। दक्षिण भारत उत्तर भारत तथा मिथिलांचल क्षेत्रों में अत्यधिक इसका महत्व है। सूर्य देव के उत्तरायण होने के कारण यह समय बहुत ही शुभ माना जाता है। इस पुण्य काल में दान, व्रत, उपवास, यज्ञ आदि तथा यहां तक कि प्राण त्यागने का भी विशेष महत्व है। दिन और रात का होना एवं मौसम में परिवर्तन होना सूर्य की परिक्रमा का ही परिणाम होता है। इस उत्सव के दिन सभी एक दूसरे के घर आते जाते हैं और तिल के लड्डू का आदान प्रदान करते हैं ताकि आपस में प्रेम स्नेह बना रहे।

यह पर्व साधना के दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। कहीं लोहरी तो कहीं खिचड़ी पर्व के नाम से जाना जाता है। इस दिन दान आदि का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि इस पर्व के अवसर पर किया गया दान कई गुना फलों की प्राप्ति कराता है। अतः सभी मानवों को मकर संक्रांति का पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनानी चाहिए।

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