



रीवा / आशुतोष तिवारी. मध्य प्रदेश में एक ऐसा अनूठा शहर है जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ ऐतिहासिक इमारतों के लिए भी जाना जाता है. अंग्रेजों के जमाने की कई इमारतें यहां मौजूद हैं. जिसमें ब्रिटिश स्थापत्य शैली का नमूना देखा जा सकता है. इसमें से एक इमारत वेंकट भवन भी है. वेंकट भवन को स्वर्ग लोक, धरती लोक और पाताल लोक की परिकल्पनाओ के आधार पर बनाया गया था. रीवा के इस भवन का निर्माण वर्ष 1895-96 के दौरान रीवा रियासत के महाराजा वेंकट रमण के द्वारा शुरू कराया गया था. इस भवन के निर्माण को लेकर महाराजा वेंकट रमन सिंह ने इंग्लैंड से आए जीनियर हैरिशन को नक्शा बनाने का काम सौंपा था.
यह भवन काफी खूबसूरत बनाया गया है.आज भी दूर-दूर से लोग इस भवन को देखने के लिए आते हैं.वेंकट भवन में कई सुरंगे बनाई गई जो सीधे रीवा किला की ओर जाती थी. इस सुरंगे गुप्त रास्ते का काम करती थी.जिससे संकट की घड़ी में पार पाया जा सके और गुप्त मंत्रणा की जा सके.यह भवन बेहद खूबसूरत लगता है. दरवाजा खुलते ही भूमि – सतह मे बरामदे से लगे हुए कक्ष है. खास बात यह है की इंग्लैंड के इंजीनियर ने इसका नक्शा तैयार किया था और अपने निगरानी में बनवाया था. इस आलीशान इमारत के छत में खूबसूरत रंगीन शीशों से नगकारी की गई है. जो आसमान में तारों सा एहसास कराती है.
13 वर्षों में 3 लाख रुपये की लागत से बना था
इतिहास कार असद खान कहते है कि ये भवन एक गोलाकार हौज में टिका हुआ है, जिसके ऊपर पूरा महल खड़ा है. इस हौज की गहराई 9-6” है. यह रानियों का स्नानागार था. इसमें लकड़ी की बालकनी बनाई गई थी.हौज का गंदा पानी बाहर निकालने के लिए भी एक खास तरह का सिस्टम बना है जैसे आज के स्विमिंग पुल में बना रहता है.इस भवन के डिजाइन मेंब्रिटिश स्थापत्य शैली का प्रभाव झलकता है. इस तल के मध्य में एक गोलाकार केन्द्रीय हाल है, जिसे दर्बार हाल भी कहा जाता है. इसी से लगे हुए अलंकर युक्त 4 कमरे हैं. दर्बार हाल के सीलिंग में बने चांद-तारे आज भी टिमटिमाते हैं. इस हाल में महाराजा वेंकटरमण सिंह का, फिर बाद में महाराजा गुलाब सिंह का दर्बार लगता रहा है. इसी भवन से सन् 1946 ई0 में फिल्म अभिनेता राजकपूर की शादी यहां के तत्कालीन आई.जी. पुलिस करतार नाथ की पुत्री कृष्णा के साथ हुई थी.
करीब 1000 से अधिक मजदूरों ने काम किया था
उस वक्त भवन के निर्माण कार्य में करीब 1000 से अधिक मजदूरों ने काम किया था जिनके दिन -रात की मेहनत से 13 वर्षों में 3 लाख रुपये की लागत से बनकर यह भवन तैयार हुआ था. कहा यह भी जाता है की उन दिनों अकाल पड़ जाने की वजह से रीवा राज्य की प्रजा पलायन कर रही थी. पलायन को रोकने के लिए और लोगो को रोजगार देने के लिए इस भवन का निर्माण करवाया गया था. और यहां कामगारो को वेतन के साथ साथ खाना पीना भी दिया जाता था.
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FIRST PUBLISHED : August 12, 2023, 16:33 IST