धर्म: चैती नवरात्रा कल से प्रारंभ, देवी का आगमन अश्व व प्रस्थान नरवाहन होने से भक्तों के लिए होगा अति शुभ फलदायक

रिपोर्ट: राजीव मिश्रा|करजाईन

●कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त: प्रातः 8 बजकर 19 मिनट से 02 बजे तक सर्वार्थ सिद्ध योग होने से समस्त प्रकार के सिद्धि की प्राप्ति

●विशेष: इस बार की नवरात्रि सर्वार्थ सिद्ध योग में आरम्भ होकर दुर्लभ योग की प्राप्ति

कल यानी 09 अप्रैल से कलशस्थापन के साथ ही चैती नवरात्र प्रारंभ हो रहा है। इस बार देवी का आगमन अश्व पर एवं प्रस्थान नरवाहन पर होने से शुभ फलदायक है। उक्त जानकारी देते व चैती नवरात्र के महात्म्य पर चर्चा करते हुए पंडित धर्मेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि 13 अप्रैल शनिवार को षष्ठी व्रत, एकभूक्त खरना सायंकाल में तथा 14 अप्रैल को जुड़शीतल के साथ साथ सूर्य षष्ठी व्रत एवं सायंकालीन अर्ध तथा बेलनोती, 15 अप्रैल सोमवार को प्रातः कालीन अर्ध, नवपत्रिका प्रवेश, महारात्रि निशा पूजा संपन्न होगी। 16 अप्रैल मंगलवार को महाअष्टमी व्रत दीक्षा ग्रहण तथा 17 अप्रैल बुधवार को रामावतार, रामनवमी, महानवमी व्रत, हवनादि कार्य, हनुमदध्वजदान तथा 18 अप्रैल गुरुवार को दशमी के साथ इस नवरात्र का समापन होगा।

पंडित धर्मेंद्र नाथ मिश्र

उन्होंने बताया कि धर्मशास्त्र एवं आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो योग-तप का जो भी परिणाम होता है, वह शरीर- मन- मस्तिष्क को अवश्य ही स्वस्थ्य बना देता है। एक वर्ष में चार नवरात्र आते हैं, दो मुख्य और दो गुप्त नवरात्र। जिन लोगों को शक्ति की उपासना करनी हो, उन्हें चैत्र व शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा अर्चना अवश्य ही करनी चाहिए। बताया कि मां दुर्गा की नौ विभूतियां हैं, नवरात्र के नौ दिनों में हर दिन मां की अलग-अलग विभूतियों की पूजा होती है। मां दुर्गा अपने नौ रूपों से ज्ञान, विद्या, शक्ति, तंत्र, मंत्र, एवं सृष्टि चक्र को संचालित करती है। नवग्रह भी मां के इन्हीं नौ रूपों के अधीन है। जिन पर मां की कृपा होती है, ग्रहों की स्थिति इनके अनुकूल होती है। नवरात्र में कलश की स्थापना और जौ बोने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि नवरात्र के दौरान किसी प्रकार की विघ्न बाधा नहीं आए, वैज्ञानिक तौर पर वर्ष भर जो विभिन्न प्रकार के अभ्यास किये जाते हैं, उनकी तुलना में अश्विन और चैत्र के महीनों में इन अभ्यासों का ज्यादा प्रभाव देखा गया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी वजह यह है कि इन महीनों में 23 तारीख को दिन और रात बराबर होते हैं। उसमें भी अभ्यास यानि योग-जप-तप यदि नये चंद्रमा के हिसाब से शुरु किया जाए तो शरीर ही नहीं, बल्कि मन भी अधिक प्रभावित एवं अनुकूल हो जाता है। इसीलिए आश्विन और चैत्र मास के उजले पखवारे अर्थात शुक्ल पक्ष की पहली तिथि को ही नवरात्र शुरू होते हैं। उन्होंने बताया कि इन नौ दिनों में साधना-उपासना-पूजा-पाठ एवं जप-तपों का सिलसिला धर्म-कर्म से जोड़ा गया है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इन तारीखों में कुदरत अपनी रंग बदलती है। शास्त्रानुसार कलश में सभी ग्रह, नक्षत्र, चारोंवेद, ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ-साथ नदियां एवं समस्त तीर्थों और गायत्री, सावित्री, रिष्टि, पुष्टि तथा शांति का आवाहन एवं वास होता है। जिससे यज्ञादि अनुष्ठान शुभ प्रभाव से संपन्न होकर भक्तों के सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति संभव हो जाती है।

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