सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए होता है वटसावित्री व्रत: आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र

रिपोर्ट: राजीव मिश्रा|करजाईन

सुहागिन महिलाओं का महापर्व वटसावित्री पर्व इस बार 6 जून गुरुवार को मनाया जाएगा। वटसावित्री व्रत के महात्म्य पर चर्चा करते हुए त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी पंडित आचार्य धर्मेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि व्रतपर्व और त्योहारों का प्रचलन हमारे प्राचीन ज्ञान विज्ञान संपन्न ऋषि महर्षियों तथा पूर्वज विद्वानों के द्वारा चला आ रहा है। ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि वटसावित्री व्रत के नाम से जाने जाते हैं।यह व्रत सभी सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए है। यह व्रत संपूर्ण भारतवर्ष में स्त्रियां पूरी निष्ठा के साथ करती हैं। इस व्रत को विधि विधान पूर्वक करने से पति को पूर्ण आयु एवं पुत्र इत्यादि की प्राप्ति होती है।

आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र

उन्होंने वटसावित्री व्रत के कथा महात्मा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि भद्र नाम के देश में एक निःसंतान राजा अश्वपति ने पत्नी सहित सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत एवं पूजन करके सुंदर कन्या प्राप्त किया। अश्वपति ने सर्वगुण संपन्न जो साक्षात सावित्री ही थी और सावित्री ने ही अश्वपति के यहां कन्या रूप में जन्म ली।उसको अपने मंत्री के साथ वर चयन की दृष्टि से देशाटन के लिए भेजा। सावित्री ने महाराज दुमत्सेन के अल्पायु पुत्र सत्यवान को भावनात्मक रूप से पति के रूप में चयन व वरन किया। नारद जी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान की आयु मात्र 1 वर्ष शेष रह गया है। इस पर राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री को दूसरा वर चयन के लिए कहा। इसके उत्तर में पुत्री सावित्री ने जवाब दिया कि पिताजी मैं आर्य कुमारी हूं, जो जीवन में एक ही बार वर चयन करती है। अब चाहे वह अल्पायु हो या दीर्घायु, उन्हीं सत्यवान से विवाह करूंगी। समय अनुसार विवाह संपन्न भी हुआ। विवाहोपरांत एक दिन सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने के लिए प्रस्थान किया, साथ ही सावित्री भी उसके साथ चली गई। सत्यवान वृक्ष पर लकड़ी काट रहे थे, उसी समय उनको वेदना दर्द प्रारंभ हुआ और नीचे उतर गया। सावित्री ने सत्यवान को अपने गोद में लेकर चिंता में पड़ गई। तभी यमराज ने आकर सत्यवान के प्राण को लेकर चले गए। जाने के क्रम में सावित्री ने यमराज का पीछा किया। पीछे आती हुई सावित्री को देखकर यमराज ने वापस लौटने को कहा। सावित्री ने यमराज से कहा कि महाराज पत्नि के पतित्व की सार्थकता इसी में है कि वह पति के छाया के समान अनुसरण करें। मैं ऐसा ही कर रही हूं, यह मेरी मर्यादा है। ऐसा कई बार हुआ कि यमराज ने सावित्री को समझाया, किंतु सावित्री हर बात कोई ना कोई तर्क देकर उनका पीछा करती रही। अन्तोगत्वा सावित्री की पति पारायण धर्म निष्ठ भक्ति से प्रसन्न होकर अनेक पुत्र तथा सत्यवान को दीर्घायु प्रदान कर सावित्री के साथ लौटा दिया। इस प्रकार के व्रत अनुष्ठान पूजा से सभी स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तभी से यह सावित्री व्रत वट सावित्री के रूप में संपूर्ण देश में मनाया जाता है।

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