



न्यूज डेस्क सुपौल:
पवित्र सावन मास की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है और इसी के साथ राघोपुर रेलवे स्टेशन से करीब पांच किलोमीटर और जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर राघोपुर प्रखंड के धरहरा गांव स्थित ऐतिहासिक बाबा भीमशंकर महादेव मंदिर में श्रावणी मेला का शुभारंभ भी होगा। कोसी, मिथिलांचल और सीमांचल ही नहीं, बल्कि नेपाल तक में प्रसिद्ध यह स्थल धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत केंद्र है। हर वर्ष सावन में लाखों कांवरिया और शिवभक्त यहां भागलपुर स्थित महादेवपुर घाट व कोसी बैराज से जलाभिषेक के लिए उमड़ते हैं। इस बार सावन में कुल चार सोमवारी मिल रही हैं, जिससे बाबा के दरबार में आस्था की लहर पहले से ज्यादा तेज होने की संभावना जताई जा रही है।
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक इंतजाम
श्रावणी मेले को लेकर मंदिर विकास समिति की ओर से तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। समिति के सचिव संजीव कुमार यादव ने बताया कि श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए मंदिर परिसर के साथ-साथ पूरे मेले क्षेत्र को सुव्यवस्थित किया जा रहा है। मंदिर को भव्य लाइटों से सजाया जा रहा है। परिसर की साफ-सफाई के साथ शिवगंगा पोखर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। नए घाटों का निर्माण हो रहा है ताकि स्नान एवं जल भरने की प्रक्रिया सुगमता से हो सके। स्थायी शौचालय, स्नानगृह और चापाकलों की संख्या बढ़ाई गई है, जिससे दूर-दराज से आने वाले भक्तों को किसी तरह की असुविधा न हो। वाहनों की आवाजाही को लेकर सभी एंट्री पॉइंट पर बेरिकेटिंग की व्यवस्था की गई है।

धरहरा स्थित बाबा भीमशंकर महादेव धाम की पहचान सिर्फ उसके ऐतिहासिक महत्व से नहीं, बल्कि यहां की श्रृंगार पूजा परंपरा से भी है। सावन की हर सोमवारी को भव्य श्रृंगार पूजा होती है, जिसके लिए भक्त वर्षों पहले ही नाम दर्ज करवा देते हैं। बताया गया कि कुछ भक्तों की बारी 6 से 8 साल बाद आती है, जिससे इस पूजा की लोकप्रियता और श्रद्धालु भावना का अंदाजा लगाया जा सकता है।

इतिहास में रचा-बसा है धरहरा का यह शिवधाम
इस पवित्र स्थल का इतिहास भी गहराई से आस्था से जुड़ा है। बताया जाता है कि 1934-35 के आसपास, जब कोसी नदी इस क्षेत्र से बहती थी और चारों ओर घना जंगल था, तब मवेशी चराने आए चरवाहों को एक शिवलिंग मिला था। प्रयासों के बावजूद जब उसे स्थानांतरित नहीं किया जा सका, तब यहां मंदिर निर्माण की परिकल्पना की गई। निर्माण कार्य के दौरान अष्टधातु की विष्णु प्रतिमा और अन्य धार्मिक अवशेष भी मिले, जिससे इसकी पुरातात्विक महत्ता और भी बढ़ जाती है। मंदिर के पुजारी दुर्गेश नंदन गिरी ने बताया कि इस साल का श्रावण मास 11 जुलाई से प्रारंभ होकर 9 अगस्त को समाप्त होगा। इसमें खास यह है कि इस श्रावण मास में चार सोमवार मिलेंगे। बताया कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से बाबा का जलाभिषेक करते है उनकी झोली कभी खाली नही जाती है।

पौराणिक कथा: पांडवों और कर्ण से भी जुड़ी है यह भूमि
यह शिवधाम महज मंदिर नहीं, बल्कि महाभारत कालीन घटनाओं से भी जुड़ा माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव जब नेपाल के विराटनगर की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने इस स्थान पर विश्राम किया था। बलशाली भीम ने यहां शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की थी, तभी से यह स्थान भीमशंकर महादेव के रूप में विख्यात हुआ। वहीं एक अन्य कथा अंगराज कर्ण से जुड़ी है। कहा जाता है कि धरहरा गांव के समीप ही कर्ण का किला था और वे यहां मन की शांति के लिए आते थे। उनकी समाधि भी यहीं होने की बात कई स्थानीय जनश्रुतियों में कही जाती है।
सुरक्षा व प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त
श्रावणी मेले के दौरान श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए हैं। मंदिर विकास समिति के पदेन अध्यक्ष एवं वीरपुर एसडीएम नीरज कुमार ने बताया कि इस बार सुरक्षा के लिए चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। भीड़ प्रबंधन के लिए बैरिकेटिंग की जा रही है। मजिस्ट्रेट की तैनाती की गई है। बीडीओ, सीओ, थानाध्यक्ष समेत प्रशासन के तमाम अधिकारी और कर्मचारी मंदिर परिसर में मौजूद रहेंगे। अतिरिक्त महिला एवं पुरुष बल की तैनाती भी सुनिश्चित की गई है।

धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक चेतना का संगम
धरहरा स्थित बाबा भीमशंकर महादेव मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह गांव-समाज में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का भी प्रतीक बन चुका है। श्रावण मास में यहां जुटने वाली श्रद्धालुओं की भीड़, प्रशासनिक सक्रियता और जनसहभागिता मिलकर इसे एक विशाल धार्मिक आयोजन में बदल देते हैं।