न्यूज डेस्क सुपौल:
जिले के राघोपुर थाना क्षेत्र के सिमराही बाजार में एक ईएनटी डॉक्टर द्वारा एक मासूम बच्ची के गले में फंसे सिक्के को निकालने के लिए नायाब तरीका अपनाया गया। डॉक्टर ने सिक्का निकालने के पहले बच्ची को बेहोश किया फिर उसके गले पर चीरा लगाकर सिक्का निकालने का प्रयास शुरू कर दिया। लेकिन डॉक्टर का तरीका मासूम के जिंदगी पर भारी पड़ गया और इस दौरान बच्ची की मौत हो गई। जानकारी अनुसार बच्ची के गले में एक सिक्का अटक गया था, जिसके बाद परिजनों द्वारा बच्ची को सिमराही के साईं नर्सिंग होम एंड लेप्रो सेंटर लाया गया। बच्ची के इलाज हेतु वहां के संचालक द्वारा सिमराही में ही संचालित सम्राट नाक कान गला हॉस्पिटल के डॉक्टर बिनोद कुमार को मेहता को बुलाया गया। जिसके बाद डॉक्टर ने उस बच्ची को बेहोश कर उसका गला काटकर सिक्का निकालने का प्रयास शुरू किया, जिसके बाद मौके पर ही बच्ची की मौत हो गई।
बता दें कि बच्ची के मरने की जानकारी जैसे ही परिजनों को हुई, उसके बाद परिजनों ने अस्पताल परिसर में जमकर हो हंगामा शुरू कर दिया, साथ ही इस घटना की जानकारी राघोपुर पुलिस को भी दिया। जिसके बाद पुलिस ने मौके पर पहुंच डॉक्टर सहित कुछ अन्य कर्मियों को भी अपने कब्जे में लेकर थाना ले आई। इस दौरान परिजनों ने कई बार प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ दीप नारायण राम ने मोबाइल पर भी फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
बता दें कि मृत बच्ची की पहचान वीरपुर थाना क्षेत्र के बेरिया कमाल, लालपुर गोठ निवासी मो नौशाद आलम की पांच वर्षीय पुत्री फैजा प्रवीण के रूप में हुई।
परिजनों ने अस्पताल पर लगाया गंभीर आरोप
वहीं, घटना को लेकर जानकारी देते मृत बच्ची के परिजनों ने बताया कि बच्ची ने करीब तीन-चार दिन पूर्व ही सिक्का निगल लिया था। इसके बावजूद वो ठीकठाक थी और अच्छे से खानापीना भी खा रही थी। बताया कि गुरुवार की संध्या उनलोगों ने बच्ची को सिमराही के करजाईन रोड स्थित साईं नर्सिंग होम में इलाज करवाने के लिए लाया। जहां अस्पताल के संचालक ने बताया कि इसका ऑपरेशन करना पड़ेगा और इसमें दस हजार रुपये खर्च आएगा। जिसके बाद परिजनों ने अस्पताल संचालक के पास नौ हजार रुपये जमा करवा दिया। इसके बाद अस्पताल संचालक ने सम्राट नाक कान गला हॉस्पिटल के डॉक्टर बिनोद कुमार मेहता को बुलाया। इसके बाद डॉक्टर ने बच्ची को एनीतिशिया डालकर बेहोश कर दिया और गले पर जैसे ही चीरा लगाया, बच्ची की मौत हो गई। परिजनों ने बताया कि बच्ची की मौत के बाद भी अस्पताल संचालक इस बात पर अड़े हुए थे कि बच्ची बेहोश है। बताया कि बच्ची की मौत के बाद डॉक्टरों द्वारा अस्पताल में मौजूद महिला परिजनों को कहा गया कि अस्पताल द्वारा एम्बुलेंस की व्यवस्था कर दी गई है, बच्ची की हालत खराब है, इसे जल्दी से बाहर ले जाइए। लेकिन जब पुरुष परिजन अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों ने न तो बच्चों से मिलने दिया और न ही कोई दरवाजा खोल रहा था। इसके बाद परिजनों ने जब धमकाना शुरू किया, तब जाकर अस्पताल का दरवाजा खुला। दरवाजा खुलने के बाद जब परिजनों ने बच्ची को देखा तो पाया कि बच्ची मृत है। इसके बाद परिजनों ने अस्पताल परिसर में हो हंगामा शुरू कर दिया और घटना की सूचना प्रशासन को दिया।
3 लाख में मामले को किया रफा दफा
वहीं घटना के बाद कुछ लोगों द्वारा बीच बचाव शुरू कर दिया गया। जिसके बाद घटना को लेकर रात्रि में एक बैठक आयोजित किया गया, जिसमें दोनों पक्षों से दर्जनों लोग मौजूद रहे। बैठक के अंत मे निर्णय लिया गया कि डॉक्टर के द्वारा मृत बच्ची के परिजनों को 3 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर दिया जाएगा। इसके बाद शुक्रवार की सुबह परिजनों को तीन लाख दिए जाने के बाद परिजन बच्ची को लेकर चले गए।
इधर, मामले में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी राघोपुर डॉ दीपनारायण ने बताया कि मामला उनके संज्ञान में नहीं है।
वहीं मामले में थानाध्यक्ष नवीन कुमार ने बताया कि दोनों पक्षों ने आपस में मैनेज कर लिया और किसी के विरुद्ध आवेदन नहीं दिया गया, जिसके बाद डॉक्टर को छोड़ दिया गया।