न्यूज डेस्क सुपौल:
सुपौल जिले के राघोपुर प्रखंड क्षेत्र के गणपतगंज बाजार में स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर, प्राचीनतम धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं, और कोई भी भक्त मां के दरबार से खाली हाथ नहीं लौटता। इस मंदिर की प्रसिद्धि पूरे क्षेत्र में फैली हुई है, और दूर-दूर से भक्त यहां अपनी मन्नतें पूरी करने आते हैं।
यह मंदिर विशेष रूप से अपने चमत्कारी अनुभवों के लिए जाना जाता है। कई भक्तों ने यहां मां दुर्गा के पांवों में छनकते घुंघरू और ढोल-नगाड़ों की आवाज भी सुनी है। सामान्य दिनों में भी इस मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन दशहरा के समय यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है। इस समय हजारों भक्त यहां पहुंचते हैं, विशेष रूप से आस-पास के जिलों से, अपनी मनोकामनाओं के साथ।
शनिवार को नवरात्र के तीसरे दिन, यहां मां दुर्गा के तृतीय स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की गई। मंदिर को इस अवसर पर विभिन्न रंगीन बल्बों से भव्य रूप से सजाया गया था।
मंदिर पूजा समिति के वरिष्ठ सलाहकार समिति के सदस्य उद्योतचंद कोठारी उर्फ बाबला बाबू ने बताया कि मंदिर का इतिहास भी अत्यधिक प्राचीन और सम्माननीय है। लगभग 150 वर्ष पूर्व, हरावत राज के जमींदार गणपत सिंह और नरपत सिंह द्वारा इस मंदिर का शिलान्यास किया गया था। पहले यह मंदिर देवीपुर पंचायत के कोरियापट्टी गांव में स्थित था, लेकिन सड़क मार्ग की खराब स्थिति और मुख्यालय से दूरी के कारण इसे लगभग 117 वर्ष पहले गणपतगंज में स्थापित किया गया।
मूर्ति निर्माण की जिम्मेदारी पिछले 27 वर्षों से बंगाल के कारीगर प्रशांत पॉल और उनकी टीम ने निभाई है। मंदिर में पूजा-अर्चना का कार्य आचार्य बैकुंठ नाथ झा के नेतृत्व में होता है, जो सुखपुर के निवासी हैं।
मंदिर पूजा समिति के प्रमुख सदस्यों में अध्यक्ष चेतन, सचिव संतोष शर्मा, सह सचिव बिनोद वर्मा, कोषाध्यक्ष सौरभ कोठारी और वरिष्ठ सलाहकार समिति के उद्योतचंद कोठारी (बाबला बाबू), बिनोद अग्रवाल, और दीनानाथ अग्रवाल प्रमुख हैं। समिति के सदस्यों ने बताया कि इस मंदिर में आने वाला कोई भी भक्त आज तक खाली हाथ नहीं लौटा है, और मां दुर्गा ने सभी की मनोकामनाओं को पूरा किया है।