न्यूज डेस्क पटना:
प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया। 72 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली। शारदा सिन्हा को लंबे समय से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ा, और उनकी इस जंग में उनके पति ब्रजकिशोर सिन्हा की मृत्यु के बाद उनकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर गहरा असर पड़ा। पिछले 11 दिनों से एम्स में भर्ती शारदा सिन्हा का इलाज जारी था, लेकिन उन्होंने जीवन की अंतिम लड़ाई हार गईं।
शारदा सिन्हा, जिन्हें “बिहार की स्वर कोकिला” और “मिथिला की बेगम अख्तर” के नाम से भी जाना जाता था, ने अपने मधुर स्वर और लोकसंगीत में योगदान के कारण पूरे भारत में पहचान बनाई। पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली, बज्जिका, और हिंदी में अनेक लोकगीत गाए, जो आज भी बिहार, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य भागों में गूंजते हैं। उनके गीत विशेष रूप से छठ पर्व और विवाह के अवसरों पर बेहद लोकप्रिय रहे हैं। उनकी आवाज में गाए छठ महापर्व के गीत हर साल इस त्योहार में सुनने को मिलते हैं और हर आयु के लोगों के बीच प्रेम और श्रद्धा से गाए जाते हैं।
शारदा सिन्हा का संगीत सफर बहुत ही संघर्षमय और प्रेरणादायक रहा। अपने परिवार में ही उन्होंने संगीत की शुरुआती शिक्षा प्राप्त की थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उनका पहला गीत उनके बड़े भाई की शादी में “दुआर छेकाई” के अवसर पर गाया गया था। इस अवसर पर उनकी नई-नवेली भाभी ने भी उन्हें सिखाया था कि दुआर छेकाई का गीत कैसे गाया जाता है। यह गीत एचएमवी द्वारा रिकॉर्ड किया गया और “दुआर के छेकाई में पहले चुकैया ओ दुलरुआ भैया” गीत से उनकी यात्रा का आरंभ हुआ।
स्कूल के समय में दुर्गा पूजा के एक कार्यक्रम में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक तौर पर मंच से गाने का अनुभव किया। इस पर समाज और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनकी आलोचना की, लेकिन उनके पिता ने हर कदम पर उनका साथ दिया और समाज के तानों के बावजूद उनका हौसला बढ़ाया। शारदा सिन्हा ने यह भी साझा किया था कि उनकी शादी के बाद उनके ससुराल में संगीत के प्रति मिलाजुला रवैया था। उनकी सास ने तो उनके गाने का विरोध किया और कई दिनों तक विरोध में भोजन भी नहीं किया। हालांकि, उनके ससुर ने उनका हौसला बढ़ाया और ससुराल के मंदिर में भजन गाने के लिए प्रेरित किया, हालांकि इससे उनकी सास और नाराज हो गईं।
शारदा सिन्हा का पहला रिकॉर्डेड गाना 1971 में हुआ था। इसके बाद उन्होंने कई गाने गाए जो लोकप्रिय हुए और कई फिल्मों में भी अपनी आवाज दी। उनके गाए गीतों ने बिहार और उत्तर प्रदेश के लोक संगीत को एक नई पहचान दी और साथ ही हिंदी सिनेमा में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। शारदा सिन्हा का नृत्यकला के प्रति भी गहरा रुझान था, और उन्होंने मणिपुरी नृत्य में भी प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
उनके निधन से संगीत जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई है। उनके जाने से बिहार और पूरे देश में संगीत प्रेमियों के दिलों में शोक की लहर है। शारदा सिन्हा की आवाज, उनके गीत और उनके लोक संगीत में योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।