15 साल बाद सहरसा और 90 साल बाद दरभंगा से रेल से जुड़ेगा फारबिसगंज, प्रधानमंत्री देंगे सौगात

रिपोर्ट: राहुल पराशर|अररिया

18 अगस्त 2008 को कोसी नदी पर बना तटबंध कुसहा के समीप ध्वस्त हो गया था। 750 किलोमीटर लंबी कोसी नदी तटबंध टूटने के बाद बाढ़ की भयावहता से लोगों का रूबरू हुआ था। भारी जानमाल की क्षति हुई थी। तीन लाख से अधिक घर बाढ़ में बह गए थे। 9000 से अधिक वर्ग किलोमीटर की उपजाऊ भूमि नदी के बालू से भर गया था। बालूचर भूमि किसानों को कई साल तक कमर तोड़कर रख दी। करीबन साढ़े तीन सौ लोगों की जान बाढ़ में गई थी। सड़क और रेल मार्ग सब ध्वस्त हो गया था। लेकिन समय के बदलते परिवेश के साथ सड़क और आम जनजीवन पटरी पर लौट आया। लेकिन फारबिसगंज से सहरसा के लिए ट्रेन परिचालन 15 वर्षों में शुरू नहीं हो पाया। इन सबके बीच फारबिसगंज सहरसा और दरभंगा रेलखंड पर ट्रेन परिचालन शुरू करने को लेकर ग्रहण अब छट गया। 02 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बेगूसराय से राघोपुर फारबिसगंज 49 किमी लंबी रेल लाइन को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जोगबनी दानापुर और जोगबनी सहरसा एक्सप्रेस का शुभारंभ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से किया जायेगा। इतना ही नहीं जोगबनी से वाया सिलीगुड़ी ट्रेन परिचालन को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरी झंडी दिखाएंगे।

बता दें कि 2008 के बाद फारबिसगंज से सहरसा रेलखंड का रेल संपर्क भंग हो गया था। उस समय यह रेलखंड मीटर गेज था। लेकिन बाद में इस रेलखंड को ब्रॉड गेज में बदल दिया गया। सहरसा से राघोपुर तक ट्रेन टू शुरू कुछ वर्षों के बाद हो गई थी। लेकिन फारबिसगंज से राघोपुर तक ट्रेन का परिचालन शुरू नहीं हो पाया। 20 जनवरी 2012 से रेलखंड के आधे हिस्से राघोपुर-फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया था। लेकिन आमान परिवर्तन की गति काफी धीमी रही। 1 दिसंबर 2015 को राघोपुर से थरबिटिया के बीच और 25 दिसंबर 2016 को थरबिटिया से सहरसा के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया था। सहरसा से प्रतापगंज तक आमान परिवर्तन पूरा हो जाने के बाद ट्रेन का परिचालन भी शुरू हो चुका था। लेकिन प्रतापगंज से फारबिसगंज कार्य की गति कछुवे की चाल को भी शरमा कर रख दिया। इतना ही नहीं कार्य पूरी हो जाने के बाद पिछले साल 11 जनवरी 2023 को मुख्य रेल सुरक्षा आयुक्त की ओर से इस रेलखंड का निरीक्षण किया गया। जिसमे उन्होंने थोड़ी बहुत निर्देश के बाद ट्रेन परिचालन शुरू करने को हरी झंडी दे दी थी। जिसके बाद रेलवे बोर्ड की ओर से भी दो ट्रेनों के परिचालन का समय सारणी के साथ घोषणा कर दी थी। बावजूद इसके नौ माह तक ट्रेन के परिचालन को लेकर सीमांचल के लोगों की आंखे पथराई हुई रही। आखिरकार पथराई आंखों में अब चमक लौट आई है। 02 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दानापुर जोगबनी और सहरसा जोगबनी ट्रेन का उद्घाटन करेंगे। जिसका नियमित परिचालन दानापुर से 05 मार्च और जोगबनी से 06 मार्च को शुरू होगा।

बता दें कि 2004 में जब देश में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी तो उस समय रेलमंत्री नीतीश कुमार, रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीज, खाद्य आपूर्ति मंत्री शरद यादव फरवरी 2004 में सरायगढ़ आए थे और सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर आमान परिवर्तन की नींव रखी थी। सरायगढ़ से सकरी और सहरसा से फारबिसगंज तक आमान परिवर्तन की इस परियोजना की लागत 335 करोड़ की थी। लेकिन इस रेलखंड के लिए बजट में पैसों के प्रावधान नहीं होने के कारण अधर में लटका रहा। फारबिसगंज सहरसा रेलखंड आमान परिवर्तन कार्य और ट्रेनों के परिचालन को लेकर संघर्ष की कई गाथा उपरांत विजयी का द्योतक है। फारबिसगंज, राघोपुर, सुपौल से सहरसा तक जनाक्रोश और संघर्ष को देखा। अलग अलग संगठन के द्वारा लगातार आंदोलन किए जाते रहे। नरतपगंज से फारबिसगंज तक पदयात्रा, धरना प्रदर्शन, रेल रोको कार्यक्रम जैसे संघर्ष को लगातार अंजाम दिया जाता रहा।

फारबिसगंज सहरसा रेलखंड आमान परिवर्तन संघर्ष समिति के शाहजहां शाद, पवन मिश्रा, रमेश सिंह, पूनम पांडिया, वाहिद अंसारी आदि ने बताया कि लंबे संघर्ष का परिणाम है कि 15 वर्षों के संघर्ष के बाद फारबिसगंज न केवल सहरसा से बल्कि दरभंगा और पटना से भी जुड़ रहा है। सीमांचल और मिथिलांचल का रेल संपर्क सुखद संयोग है।

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