याद करने पर रूह कांप जाती है, कुसहा त्रादसी के आज 16 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी नहीं मिट रहा है दर्द

न्यूज डेस्क सुपौल:

18 अगस्त का इतिहास पूर्वी बिहार के भयावह दर्द को बयां करता है। 18 अगस्त 2008 को कुसहा बांध को तोड़ कर आजाद हुई कोसी नदी ने क्षेत्र में विनाश की गाथा लिख डाली और जो तस्वीर बदली वह इतिहास के काले पन्ने में समा गई। कोसी की प्रचंड लहरों ने क्षेत्र में ऐसा तांडव मचाया कि चारों ओर कोहराम मच गया। कहने को तो इस त्रासदी के 16 वर्ष हो गए लेकिन त्रासदी की त्रासद तस्वीर मिट नहीं रही है। कुसहा त्रासदी के दौरान कोसी की उन्मुक्त धाराओं ने हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन को बालू से पाट दिया। हरे-भरे खेतों से होकर नदी बहने लगी, खेतों में बड़े-बड़े गड्ढे बन गए। क्षेत्र की उपजाऊ भूमि पर बालू की मोटी चादर बिछ गई, इसमें खेती नहीं होती बल्कि कास उगते हैं।

आज कुसहा त्रासदी के 16 साल पूरे हो गए। लेकिन आज तक बिहार के कोसी, सीमांचल के लोगों के जेहन में इसका दर्द झलक रहा है। साल 2008 में नेपाल के कुसहा नामक स्थान पर कोसी नदी का तटबंध टूटा और उसके बाद बिहार के सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, खगड़िया, दरभंगा के लगभग 450 गांव इसके चपेट में आ गए।  साथ ही नेपाल के लगभग 50 गांव पर भी इसका प्रभाव पड़ा। चारों ओर भयंकर पानी भर गया। कई गांव नदी के बीच में आ गए। कोसी नदी ने अपनी धारा बदल ली जिसके कारण कई गांव नदीं के बीच में आने के कारण पूरी तरह से बह गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 526 लोगों की मौत इस बाढ़ की चपेट में आने से हो गई जिसमें सहरसा जिले में 41, मधेपुरा में 272 और सुपौल जिले में 213 लोगों की मौत हुई थी। इस त्रासदी में कई लोग लापता भी हो गए, जिसका आजतक कोई पता नहीं चला। हालांकि, स्थानीय लोगों के मुताबिक सरकारी आंकड़े और वास्तविक आंकड़े में आसमान धरती का फर्क था, क्योंकि कई लोगों की मृत्यु का रिकार्ड सरकारी स्तर पर दर्ज ही नहीं हो पाया।

18 अगस्त को आया था जल प्रलय

18 अगस्त को कोसी ने बांध को लांघ दिया और उससे हुई बर्बादी पूरा देश जानता है। तब सरकार ने वादा किया था कि पहले से बेहतर कोसी बनाएंगे लेकिन सपने आज भी अधूरे हैं। सुपौल जिले के पांच प्रखंडों के 173 गांव जलमग्न हो गए, इसमें 6,96,816 लोग और 1,32,500 पशु प्रभावित हुए। 0.43458 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फसल बर्बाद हो गई। 0.07854 गैर कृषि योग्य भूमि प्रभावित हुई। जहां गाड़ियां सरपट दौड़ती थी वहां नावें चलने लगीं। बाढ़ के बाद भी स्थिति इतनी विकराल थी कि लोग अपने ही घर का पता पूछते थे।

सरकार ने बाद में मृतकों के परिवार के लिए 2.50 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की थी लेकिन लोगों के मुताबिक अधिकतर परिवारों को इसका मुआवजा भी नहीं मिल पाया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी मृतकों के परिवार को प्रधानमंत्री राहत कोष से एक-एक लाख रुपए सहायता राशि देने की घोषणा की थी।

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