नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए कई बदलावों के प्रस्ताव रखे हैं, जिनमें मॉब लिंचिंग के लिए नए प्रावधान जोड़ना, विचाराधीन कैदियों के लिए जमानत नियमों में बदलाव और हिट-एंड-रन मामलों में जवाबदेही तय करना शामिल है.
भारत की न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव की इस तैयारी के बीच News18 यहां ऐसे 10 बड़े बदलावों और उनके प्रभाव पर एक नज़र डाल रहा है…
पुराना बनाम नया
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सीआरपीसी की 478 धाराओं के बजाय 533 धाराएं होंगी. इस बीच, 160 धाराओं में संशोधन किया गया है और 9 धाराओं को निरस्त करने के अलावा 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं.
वहीं भारतीय न्याय संहिता में आईपीसी की 511 धाराओं की जगह 356 धाराएं होंगी. इसकी कुल 175 धाराओं में संशोधन किया गया है, जबकि 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराएं निरस्त/हटाई गई हैं. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मूल 167 सेक्शन की जगहों 170 सेक्शन होंगे. इसमें कुल 23 धाराएं संशोधित की गई हैं, एक नई जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त/हटाई गई हैं.
मॉब लिंचिंग के लिए नया प्रावधान
नस्ल, जाति, समुदाय आदि के आधार पर हत्या से संबंधित अपराधों के लिए एक नया प्रावधान शामिल किया गया है, जिसके लिए कम से कम सात साल की कैद, उम्र कैद या सजा ए मौत का प्रावधान किया गया है. झपटमारी (स्नैचिंग) के लिए नए प्रावधान के अनुसार, गंभीर चोट के कारण लगभग अक्षमता या स्थायी विकलांगता होने पर ज्यादा कड़ी सजा दी जाएगी.
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बच्चों द्वारा अपराध करवाने वालों के लिए न्यूनतम सात से 10 साल की कैद का भी प्रावधान है – यह जुर्माना पहले बहुत कम था, 10 रुपये से 500 रुपये के बीच. नए कोड में अब विभिन्न अपराधों के लिए जुर्माना और सजा को तर्कसंगत बनाया गया है.
महिलाओं के विरुद्ध अपराध
इस नए कानून में एक नया अपराध शामिल किया गया है, जिसमें असल पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने या विवाह, पदोन्नति और रोजगार के झूठे वादे की आड़ में यौन संबंध बनाने पर 10 साल तक की कैद हो सकती है. सरकार ने गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की कैद या आजीवन कारावास का प्रावधान भी पेश किया है. वहीं 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ रेप के मामले में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है.
अपराध की आय से जुड़ी संपत्ति की जब्ती
अपराध की आय से बनाई गई संपत्ति की कुर्की और जब्ती के संबंध में एक नई धारा जोड़ी गई है. जांच करने वाला पुलिस अधिकारी यह संज्ञान लेने के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है कि संपत्ति आपराधिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप प्राप्त की गई है. अगर संपत्ति रखने वाला व्यक्ति इसके संबंध में ठोस स्पष्टीकरण देने में विफल रहता है तो इस तरह की संपत्ति को न्यायालय द्वारा जब्त किया जा सकता है.
भगोड़े आरोपियों की गैरहाजिरी में भी चलेगा मुकदमा
इसके साथ भगोड़े आरोपियों की अनुपस्थिति में उन पर मुकदमा चलाने का नया प्रावधान शामिल किया गया है. इसका मतलब हुआ कि लोगों का पैसा हड़पने के बाद विदेश भाग गए लोगों सहित फरार आरोपियों को मुकदमे का सामना करना पड़ेगा और उन्हें दंडित किया जाएगा, भले ही उन्होंने जांच या न्याय प्रक्रिया में शामिल होने से इनकार कर दिया हो.
तलाशी और जब्ती
सरकार का लक्ष्य दोषसिद्धि की दर को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है और इसके लिए सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में फोरेंसिक का अनिवार्य उपयोग शुरू किया गया है. 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के सभी मामलों में फोरेंसिक विशेषज्ञों का उपयोग अनिवार्य होगा. इसके लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में आवश्यक बुनियादी ढांचा पांच साल के भीतर तैयार किया जाएगा.
जीरो और ई-FIR
नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ‘शून्य प्राथमिकी’ की प्रणाली ला रही है, जिसके तहत देश में कहीं भी अपराध हो, उसकी प्राथमिकी ‘हिमालय की चोटी से लेकर कन्याकुमारी के सागर तक कहीं से भी दर्ज कराई जा सकती है.’ इसके साथ ही ई-प्राथमिकी (E-FIR) की व्यवस्था शुरू की जाएगी. इसके लिए अब राज्य सरकार हर जिले और हर थाने में एक पुलिस अधिकारी नामित करेगी जो किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी की उसके परिवार को सूचना देगा. पुलिस अधिकारी पीड़ित को डिजिटल माध्यमों सहित 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित करेंगे.
यौन हिंसा
यौन हिंसा के मामले में पीड़िता का बयान महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा. पीड़िता का बयान उसके आवास पर एक महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में दर्ज करना भी वांछनीय होगा. ऐसा बयान दर्ज करते समय पीड़ित के माता-पिता या अभिभावक मौजूद रह सकते हैं. इसके अलावा 7 साल या अधिक जेल की सजा वाले अपराध के मामले में पीड़ित का पक्ष सुने बिना कोई सरकार मामले को वापस नहीं ले सकेगी.
प्रक्रियाओं का सरलीकरण
सरकार दावा कर रही है कि प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाएगा. ऐसे मामलों में जहां सज़ा तीन साल (पहले दो साल) तक है, मजिस्ट्रेट लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के आधार पर ऐसे मामलों में संक्षिप्त सुनवाई कर सकता है. आरोप पत्र दाखिल होने के बाद अगर आगे की जांच की जरूरत होगी तो 90 दिन के अंदर पूरी कर ली जाएगी. 90 दिनों से अधिक समय का कोई भी विस्तार केवल अदालत की अनुमति से ही दिया जाएगा.
वारंट के मामले में यह प्रावधान किया गया है कि न्यायालय द्वारा आरोप तय करने के लिए पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिन की समयसीमा निर्धारित की गई है. आरोपी व्यक्ति आरोप तय होने की सूचना की तारीख से 60 दिनों की अवधि के भीतर रिहाई के लिए अपील कर सकता है.
कोर्ट में जिरह पूरी होने के बाद न्यायाधीश 30 दिनों की अवधि के भीतर यथाशीघ्र निर्णय देंगे, जिसे कुछ खास कारणों से 60 दिनों की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है. दूसरे पक्ष की आपत्तियों को सुनने के बाद और विशिष्ट कारणों को लिखित रूप में दर्ज करने के बाद अदालत अधिकतम दो स्थगन दे सकती है.
पहली बार का अपराधी और विचाराधीन कैदी
सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जल्दी रिहा किया जा सकता है. एक व्यक्ति जो पहली बार अपराधी है और ‘कारावास का एक तिहाई हिस्सा’ काट चुका है, उसे अदालत द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा. जहां विचाराधीन कैदी ने ‘आधी या एक तिहाई सजा’ पूरी कर ली है, जेल अधीक्षक को तुरंत अदालत में लिखित रूप में एक आवेदन देना होगा. हालांकि आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा पाए किसी विचाराधीन कैदी की माफी पर विचार नहीं किया जाएगा.
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Tags: Amit shah
FIRST PUBLISHED : August 12, 2023, 18:02 IST