भगवान होकर भी राम ने निभाई गुरुकुल की मर्यादा— सिमराही में श्रीराम कथा में मुरलीधर जी महाराज का दिव्य प्रवचन

मर्यादा और विनय ही जीवन का सबसे बड़ा धर्म — श्री मुरलीधर जी महाराज

News Desk Supaul:

जिले के राघोपुर प्रखंड के सिमराही बाजार स्थित शांतिनगर वार्ड 8 में चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन गुरुवार को भक्तिभाव और भक्ति रस का अद्भुत संगम देखने को मिला। पूज्य संत श्री मुरलीधर जी महाराज के श्रीमुख से आज भगवान श्रीराम के बाल्यकाल और गुरुकुल गमन के प्रसंगों का ऐसा रसपूर्ण वर्णन हुआ कि श्रोता मंत्रमुग्ध होकर कथा में डूब गए।

बाल लीलाओं का मोहक वर्णन

महाराज जी ने बताया कि भगवान श्रीराम और उनके तीनों भाई — लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न — ने बाल्यकाल में अपनी लीलाओं से अयोध्या नगरी को आनंद से भर दिया। उन्होंने कहा, “जब परमात्मा बाल रूप में अवतरित होते हैं, तब संपूर्ण सृष्टि उनकी मुस्कान और चपलता में खो जाती है। श्रीराम की बाल लीलाएं हमें सरलता, ममता और स्नेह का पाठ पढ़ाती हैं।” कथा के दौरान जैसे ही महाराज जी ने बाल लीलाओं का चित्रण किया, उपस्थित भक्तगण भावविभोर होकर “जय श्रीराम” के उद्घोष से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

गुरुकुल गमन और शिक्षा का संदेश

इसके बाद कथा का मुख्य प्रसंग आया — गुरुकुल प्रवेश का प्रसंग। महाराज जी ने बताया कि भगवान श्रीराम और उनके भ्राता जब महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने गए, तब उन्होंने गुरु के आदेशों का पालन करते हुए अध्ययन, सेवा और विनम्रता के आदर्श स्थापित किए। उन्होंने कहा, “भगवान होते हुए भी श्रीराम ने गुरु के प्रति आदर और आज्ञापालन का जो उदाहरण प्रस्तुत किया, वह आज के समाज के लिए प्रेरणा है। शिक्षा तभी सार्थक है जब उसमें विनम्रता और अनुशासन का समावेश हो।”

विश्वामित्र जी का आगमन — धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक

कथा के दौरान महर्षि विश्वामित्र जी के आगमन और उनके द्वारा यज्ञ रक्षा हेतु राम और लक्ष्मण को मांगने का प्रसंग भी प्रस्तुत किया गया। महाराज जी ने बताया कि जब राजा दशरथ असमंजस में थे, तब भगवान श्रीराम ने सहज भाव से गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए वनगमन का निर्णय लिया। उन्होंने कहा, “धर्म की रक्षा और गुरु की आज्ञा के लिए भगवान का तत्पर होना बताता है कि सच्चा भक्त वही है जो धर्म के मार्ग पर बिना विचलित हुए चलता है।”

कथा का गूढ़ संदेश

कथा के समापन पर श्री मुरलीधर जी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन मर्यादा और विनय का प्रतीक है। हमें उनसे यह सीखना चाहिए कि जीवन में चाहे कितनी भी ऊँचाई क्यों न मिल जाए, गुरु और धर्म का सम्मान कभी नहीं भूलना चाहिए। मर्यादा का पालन ही सच्ची भक्ति है।

कथा आयोजन का विवरण

बता दे कि सिमराही बाजार के शांतिनगर वार्ड में दिनांक 10 नवंबर से शुरू हुई जल 18 नवंबर तक दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक यह श्री राम कथा चलेगी। कथा स्थल पर गरुवार को भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। महिलाएं, बच्चे और वृद्ध सभी भक्तमय वातावरण में लीन दिखे।

Leave a Comment